
बढ़ती उम्र के साथ जोड़ों की समस्या (Joint pain etc.) हो जाना अब पुरानी बात हो चली है । 30 से 50 की उम्र वाले सबसे अधिक रीढ की हड्डी व जोड़ों की समस्या से परेशान हैं।
जीवन शैली, खानपान, नशा, व्यायाम का अभाव या अत्यधिक व्यायाम जैसे बहुत से कारणों के चलते, इस तरह की समस्याएं हमें घेर लेती है। हालांकि, जानकारी के अभाव और सही इलाज नहीं मिल पाने से लोग पेन किलर खा-खाकर काम चलाते हैं ।
आयुर्वेद का त्रिदोष सिद्धांत
आज हम आपको बताएंगे कि, किस तरह आयुर्वेद के प्रामाणिक इलाज से रीढ की हड्डी व जोड़ों की समस्याओं में जबरदस्त फायदा लिया जा सकता है। इसके लिए कुछ जरूरी बातें जान लें :

1. आयुर्वेद एक प्रमाणिक चिकित्सा पद्धति है जो कि हमें स्वस्थ रहने के तरीके और बीमारियों का इलाज बताती है;
2. आयुर्वेद चिकित्सा में प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति अनुसार चिकित्सा की जाती है;
3. आयुर्वेद हमारी रसोई तक मौजूद होने के कारण, हम इसे हल्के में ले लेते हैं। बिना चिकित्सक की सलाह के,आयुर्वेदिक दवाइयां खाते हैं, जो कि उचित नहीं है। इस प्रकार हमारे धन समय और विश्वास तीनों का नाश होता है।

नोट: कमर दर्द, घुटनों का दर्द, मोच का दर्द, कंधे, गर्दन, रीढ की हड्डी में होने वाले दर्द के लिए, अनेक नुस्खों से सोशल मीडिया भरा पड़ा है, इस तरह के ज्ञान से हमें बचना चाहिए।

आयुर्वेद औषध उपचार
कुछ जड़ी बूटियां जो कि जोड़ों समस्या में फायदा पहुंचाती हैं; जैसे – अश्वगंधा, बबूल, हड़जोड़, पहाड़ी इमली के बीज, और शिलाजीत। साथ ही, आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह अनुसार जोड़ों की समस्या में कारगर आयुर्वेदिक दवाइयों में
रस और वटी
रसराज रस, वृहत् वात चिंतामणि रस, एकांगवीर रस,आमवातारि रस, वातगजांकुश रस, विषतिंदुक वटी, चंद्रप्रभा वटी, आदि।
पीने की दवाओं में
रास्नासप्तक काढा, दशमूल काढ़ा, महारास्नादि काढ़ा, अश्वगंधारिष्ट, पुनर्नवासव, एलोवेरा जूस आदि।
भस्म और पिष्टी में
प्रवाल पिष्टी, कुक्कुटांड़त्वक भस्म, श्रृंग भस्म आद; इसी तरह
गुग्गुल कल्पों में
लाक्षा गुग्गुल, त्रयोदशांग गुग्गुल, महायोगराज गुग्गुल, सिंहनाद गुग्गुल, पंचामृत लोह गुग्गुल, etc. अनेकों औषधियां प्रयोग में ली जाती है।
पंचकर्म चिकित्सा
आयुर्वेद की पंचकर्म चिकित्सा शरीर की कोशिकाओं का शोधन करती है। In short ,यह हमारे मन और शरीर को बीमारियों से लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार कर देती है। जिससे हमें संपूर्ण स्वास्थ्य या पुनर्जीवन प्राप्त हो सकता है।
वात रोग और आयुर्वेद की बस्ती चिकित्सा
आयुर्वेद में अस्थि मज्जा गत रोगों की चिकित्सा हेतु वात दोष का संतुलन बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है। आपको बता दें कि, वस्ति चिकित्सा वात रोगों की सबसे कारगर चिकित्सा है। जो कि, अस्थि और जोड़ों से संबंधित रोगों में प्रयोग की जाती है । इसमें,अवस्था अनुसार अलग-अलग औषध द्रव्यों का प्रयोग करके, गुदा मार्ग से वस्ति दी जाती है (like enema)।
अन्य थेरेपी या इलाज़
इसके साथ ही, बाहरी चिकित्सा (External therapy treatments) का प्रयोग होता है। जरूरत अनुसार कटी बस्ती, जानू बस्ती, ग्रीवा बस्ती, पृष्ठ वस्ती, वंक्षण वस्ती आदि जोड़ों के लिए जीवनदायनी साबित होता है।अभ्यंग स्वेदन, नस्य, पोटली मसाज, शिरोधारा का प्रयोग भी चिकित्सक किया करते हैं।
कौन से रोगों में लाभदायक
उपरोक्त चिकित्सा से slip disc, disc bulge, cervical spondylosis, lumbar spondylosis, osteoarthritis, rheumatoid arthritis, avascular necrosis, tennis elbow, carpal tunnel syndrome, shoulder pain, lower back pain, migraine headache, trigeminal neuralgia, जैसी समस्याओं से निजात पाया जा सकता है।
कहाँ मिलेगी यह सुविधा
You can contact Punarnava Ayurveda and Panchkarma Centre (PAPC) situated in Jaipur, for all your joint related disease conditions. Finally, get the right consultation and Best ayurvedic treatment for joint pain in Jaipur. To sum up, here is the Word of hope from Dr Abhishek Mishra, our chief physician, Ayurved and Panchkarma, has the potential to reverse many of the chronic degenerative disease conditions.